Why farmer protesting again in Delhi?
क्या फार्मर फिर से प्रोटेस्ट कर रहे है. तो इसका जवाब है हां किसानों ने इसके पहले 2021 में प्रोटेस्ट किया था जिसमें नॉर्थ इंडियन के किसानों ने एग्रीकल्चर रिफॉर्म को ब्लैक लो कहा और फिर जाकर सरकार को अपना फैसला पीछे लेना पड़ा तीनों कानून को फिर दोहराना पड़ा और पारित कर फैसला सुनाया गया
What's the fact about 2024 farmer protest
फिर 2024 का प्रोटेस्ट क्यों और किसान क्या चाहता है और सरकार वह जो चाहते हैं वह उन्हें क्यों नहीं दे रही है क्या
प्रोटेस्ट की जगह ब्लैकमेल किया जा रहा है. सरकार को
1) क्या किसान इलेक्शन पास आने पर ही मांग रखता है?
2) क्या यह मांग सरकार को नेगेटिव दिखाना क्या यह उनकी साजिश है?
बीते दिनों में 250 से ज्यादा किसान संगठन एक साथ आए हैं और उन्हें नाम दिया गया है किसान मजदूर मोर्चा यह प्रोटेस्ट का केंद्र पंजाब है और इसमें हरियाणा और अप यूपी के किसान है आमतौर पर जो पिछले कुछ वर्षों पहले मोर्चा हुआ उसी का यह नया version है. बीते वर्षों जो रणनीति अपनाई थी वही रणनीति इस वक्त भी अपनाइ है पर इस समय कुछ बदलाव है बीते वर्षों पहले जो किसान संगठन जुड़ा हुआ था वह इस समय नहीं है वह संगठन जिसका नाम है संयुक्त किसान मोर्चा (skm) जो 2021 में farmer low के पक्ष में कर रहे थे वह इस समय अलग हो चुके हैं Rakesh tikesh जो किसान नेता है वह कहते हैं की जो पहले संयुक्त किसान मोर्चा था इस समय वह उनका आंदोलन नहीं है (ET now svadesh channal)
What we think about protest
अब हमें आम आदमी के तौर पर यह सोचना और समझना जरूरी है कि यह विरोध पहले प्रोटेस्ट का भाग नहीं है
जब पिछला प्रोटेस्ट हुआ सब सरकार ने सारी शर्तें मान ली थी और किसान लौट कर घर वापस चले गए थे और इस समय का यह प्रोटेस्ट नया है और फार्मर्स की मांग यानी के डिमांड वह भी नए हैं इन्हें फार्मर का दूसरा चरण (2.o) कहना गलत होगा इस साल के शुरुआत में इंटिरिम बजट (interim budget) जाहिर होने के बाद आंकड़ों का अनुमान लगाया है.
Former budget for 2024 interim budget estimate in numbers
आईए देखते हैं किसानों को इस साल बजट किस प्रकार पेश हुआ है
Department of agriculture and farmer welfare Rs 1,47,528 lakh crore
इन योजनाओं में सम्मिलित है:
1) pm Kisan fund ₹ 60,000 crore
2) प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ₹14,600 crore
3) interest subvention scheme ₹ 22,600 crore
4) promotion of farmer fpo ₹ 587 crore
इतना खर्च होने वाला है और इसके अलावा
Department of chemical and fertilizer
इन पर हम ₹ 1,64,150 lakh crore यह सारा पैसा fertilizer पर subsidy देने में खर्च होता है इनको ज्यादातर इनपुट किया जाता है या फिर price को सामान रखने के बीच खर्च किया जाता है fertilizer की subsidy मैं इसका उपयोग किया जाता है यह बयान अशोक गुलाटी जैसे expert का मानना है department of food distribution ₹205,000 lakh crore यह पूरा amount MSP खरीदने पर खर्च होता है इसका उपयोग सिर्फ 6% farmer करते हैं इसमें ज्यादातर जो फार्मर प्रोटेस्ट कर रहे हैं इसका फायदा सिर्फ उन्हीं को मिलता है इसमें
Dairy, fruit, masale, vegetable पर कोई msp नहीं होता है आंकड़ों के मुताबिक ₹ 486,678 lakh crore यह ज्यादातर पूरे भारत के बजट का 10% है इसमें विद्युत विभाग की subsidy मिलाई गई ही नहीं है वह ज्यादातर स्टेट गवर्नमेंट के अंदर होती है जो दि जाती है यह आंकड़े सिर्फ केंद्र सरकार के है जो दिए जा रहे हैं गेहूं और आदि की खरीदी पर पंजाब से 30% से लेकर 40% तक खरीदारी होती है तो किसानों का सारा पैसा एक ही स्टेट में जा रहा है तो आप सोचिए
List of former protest demands:
1)full debt waiver for farmer and labour
2) implementation of the land acquisition act of 2013
3) punishment for the perpetraters of Lakhimpur Kheri killings
4) withdrawal from the world trade organisation and freeze all free trade agreements
5) pension for farmers and farmer labours
6) compensation for farmer who died during the Delhi protest including a job for one family member
7) electricity amendment Bill 20-20 should be scrapped
8)200(instead of 100) days employment under MGNREGA per year wage of rupees 700
9) strict penalties and fines on company producing fake seeds, pesticides fertilizers
10) improvement in seeds quality
11) national commission for spices such as chilli and turmeric
12) insure rights of indigenous people over water forest and land
यह 12 डिमांड सरकार के पास रखी है इनमें से कुछ डिमांड सही है और कुछ डिमांड गलत है पर इस लोकतांत्रिक देश में मौलिक अधिकार होने पर नाजायज मांग भी जायज है विशेष तौर पर जब इलेक्शन पास होते ही नाजायज मांगभी जायज हो जाती है जैसे wto से निकल जाना free trade agreement cancel कर देना यह भारत के लिए भारत के खिलाफ है या तो कह भारत के फायदे में नहीं है इन मांगों से भारत का ज्यादातर नुकसान होगा ज्यादातर बातचीत इस प्रकार ही होती है कुछ डिमांड इतने गलत होते हैं कि सबको पता है कि वह मांग बिल्कुल ना मंजूर और अस्वीकार्य होगी उन्हें पता है कि गलत डिमांड्स के आड़ में सही डिमांड्स स्वीकार्य होगी
MSP problems: किसानों के सभी मांगों में से एक मांग है msp फार्मर चाहते हैं की msp लागू हो जाए बतौर legal rights वैसे msp का मतलब क्या है minimum support price किसी कारणवश मार्केट में धान के भाव गिर गए तो सरकार किसानों को msp डिक्लेयर करती है लेकिन msp system broken hai (टूटी फूटी है) क्योंकि पूरे भारत के सिर्फ 6% किसानों को msp का कुछ लाभ मिलता है सरकार कितने भी कोशिश कर ले पूरे भारत में उगने वाला धान वह खरीद नहीं सकती 1960 में हरित क्रांति (Green revolution) हो रहा था हमारी स्थिति बहुत खराब थी उस समय हम foreign aid पर गुजारा कर रहे थे उस समय किसानों को धान उगाने के लिए उत्साहित करने के लिए msp की प्रथा शुरू हुई लेकिन तब से अब तक बदलाव आ चुका है
हमे deficit country से food supplier country बन चुके हैं लेकिन आज एक दूसरा प्रॉब्लम है हमारे अनाज का भंडार रखने के लिए जगह वह कम गिर रही है food corporation of India की capacity क्षमता 800 लाख tonns है और 2020 का data कहता है कि हम 900 लाख tonns लेकर रखा है पहले से हम ज्यादा धान ले चुके हैं msp सिर्फ सरकार लेती है msp के लिए private companies को मजबूर नहीं करती तो यहां पर supplier or demand rules चलते हैं यानी उन्होंने cheaper price or better quality (compani) वह चाहते हैं वह कहीं से भी खरीद सकते हैं आमतौर पर वही होता है भारत में धान भारतीय किसानों से खरीदने के बजाय रसिया से खरीदा जाता है भारत में धान की msp 2275₹ पर क्विटल पर हे और रसिया और इतर देश की msp जान लेते हैं Russia 1869₹ और Argentina 1994₹ और international market Chicago बोर्ड 1809₹ धान लाया जाता है तो वर्तमान स्थिति में भारत सरकार और private player को कोई फायदा नहीं दिख रहा है क्योंकि हमें (किसान) लो क्वालिटी धान msp पर बेचने की आदत पड़ चुकी है इसलिए धान की खेती आरक्षणीय नहीं रही है
Why farmer protesting for MSP and the impact
Msp का देश पर impact : इस साल भारत का धान उत्पादन करीबन 114 million tonnes होकर रिकॉर्ड क्रॉस कर चुका है यह अच्छी बात है ज्यादा धान यानी कि कम दाम यानी की inflation control होगा हम export करके profit कमा सकते हैं पर ऐसा नहीं है प्रॉब्लम है msp क्योंकि msp एक political हथियार बन चुका है पिछले साल 7% की बढ़ोतरी देखी गई और अब हर साल यही चलता रहेगा तो कोई भी प्राइवेट प्लेयर msp के नीचे नहीं खरीदी कर पाएगा यानी महंगाई बढ़ेगी और कारण अब आप सब लोग जानते हैं होलसेलर को भी महंगे दामों पर और तो और आम आदमी को भी महंगे दाम पर खरीदना होगा और इसके जिम्मेदार किसान होंगे swaminathan committee एक formula बनाया था जिसमें msp cost से 50% ज्यादा होनी चाहिए लेकिन आज के मुताबिक स्वामीनाथन कमेटी के रिकमेंडेशन से कई ऊपर है धान उत्पादन स्टेट में से 8 से 12 स्टेट में स्वामीनाथन कमेटी से ऊपर यानी के high पर पाई गई है
msp problem: इसमें खामियां हैं की msp मैं जो धान ज्यादा उगता है msp cost ज्यादा होने के कारण हमें इंटरनेशनल मार्केट में इसे भेज नहीं सकते यह धान भंडार में रहकर खराब होता रहता है ज्यादातर 30% धान हर साल खराब हो जाता है जिस गति से हम उगा रहे हैं उतना हमारा भंडार घर यानी की (storage facility) नहीं बन रही है उसके लिए ज्यादा खर्च याने के (high investment) लगती है private player इसमें आना नहीं चाहते क्योंकि इसमें कोई इंसेंटिव जुडा नहीं है msp जो किसानों के हितों के लिए बना था आज भारत को और भारत के किसानों के लिए घातक साबित होगा msp financial burden 10 lakh crore हो सकता है यह नुकसान हर भारतीयों के लिए और भारत के लिए है यह एक श्राप है
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